आज कल फिर वही मौसम है
जब बीती बातों का आलम है
चारों और वही उदासी
वही सन्नाटा, वही तन्हाई
वही मैं और वही परछाई
वही रात और वही दीवांगी
कहीं दूर एक तूफ़ान उठता है
अपनी मदहोशी के आगोश में लिए हजारों बातें
शायद अकेले में कुछ कहना चाहता है
शायद... कुछ याद दिलाना चाहता है
शायद... कुछ भुलाना चाहता है
रात के काले सन्नाटे में,
एक मदहोश तूफ़ान नया आघाज़ करना चाहता है
पुरानी किताबों के आँचल में जडी कुछ तस्वीरें,
अचानक फ़िर सजाई जाती हैं.
मंजिलें तो काफ़ी आई, और रास्ते हर मोड़ पर बदले
लेकिन याद उनकी फ़िर भी आज सताती हैं.
क्यों न दी जाती है दीवानों को
छूट उनकी हसी की गूँज से.
सदियों से वीराने, भूली बंजर हकीकत पे
क्यूँ न मिलती है दीवानों को बसाने की इजाज़त
आशियाने यादों के फूलों से.
Thursday, July 24, 2008
पुरानी बातें
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